Wednesday 18 May 2011

अनुभूति!!!

काल के प्रवाह को भला रोका जा सकता है?
शायद नहीं;क्योंकि जिस दिन रुक गया यह चक्र,
मिट जायेगी सर्जना की नित्य भव्य गोलोक सदा के लिए,
स्थिरत्व पैदा करता है  जडत्व ,जिसका न अस्तित्व है न महत्व,
इसलिए चलने दो यह 'रास', हरा-भरा रहेगा वृन्दावन,
तभी संभव होगा मिलन जीवात्मा का परमात्मा में......................................(१)
भूल जाएँ वो वेदना,जो मिला है वक़्त के थपेड़ों से,
न भोग पाने की वो अतृप्त इच्छा,न मिलने की आकांक्षा,
भुलादें सब दिल से,निर्मूल कर दें वो जड़ को,
जो पैदा किया है,निराशा की विष वृक्ष को,
पवित्र कर लें कलुषित आत्मा को,स्नान करके गंगा के पीयूष स्रोत में,
क्योंकि आ गया है वह ब्राह्म मुहूर्त,
अब नहीं समय निद्रित रहने का,हाँ निद्रित रहने का................................(२)
बढ़ चलो अब आ गया है वो वक़्त,
छट गए हैं बादल निराशा के,
फैल गयी है शुभ्र ज्योति चारों ओर,
भर लो नयी चेतना,सफलता चूमेगी कदम,
फूल खिलेंगे हर पग में,बहार आ जाएगी गुलशन में,
लिख डालो स्वर्णिम अक्षरों से,अपराजय का संगीत,
करदो खडा यश कीर्ति का ताजमहल,
फैला दो शुभ्र ज्योत्स्ना कोटि सूर्य की किरणों से,
सुनादो  नव निर्माण का महामंत्र ,जो शाश्वत है,अमर है.................................(३)

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