जीवन!
तीन वर्णों की व्यापक परिधि में,
जरा दुःख से कवलित मानव,
वक़्त के थपेड़ों से मार खा खा कर,
ज़िंदा है,डटा हुआ है,
जीने की ललक अभी तक,चाह अबतक शेष.....
शायद इसलिए की,
जीवन का नाम संघर्ष ..
यूँ कहें तो---
जीवन एक संघर्ष...|
सुख है तो देखा हुआ,
पर कभी भोगा नहीं,
कहते हैं;चक्रवत कभी आये दुःख तो कभी सुख,
पर,मानने के लिए वाध्य नहीं हूँ मैं...|
मानु भी कैसे?
जिसका न स्थायित्व हो,
उसका अस्तित्व ही क्या?
इस व्यापकता में,
उसका क्षणभर का प्रभाव क्या?
कुछ नहीं,न के बराबर...|
जो साथ न दे वो साथी कैसा?
इसलिए अपना लिया है दुःख को,
समझकर पर्यायवाची सुख का..|
अब न कोई तकलीफ,
न कोई आह,
बस, अपने धुन में मस्त!
क्योंकि,मैंने जीना सीख लिया है,
दुःख में भी सुख पा लिया है,
अब कैसा दुःख,कैसा शोक,
ना कोई ग्लानी,ना कोई कष्ट..|
मर मर के जीना कोई जीना है,
जीवित रहके भी ये तो,
मानो मरना है!
हाँ,इसी का नाम जीना है,
नहीं परवाह सुख की जहाँ,
हँस के जीना ध्येय है........|
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