भय था जिसका पहले से
आज आ गया वह निर्मोही,
कहने लगा हो जाओ तैयार
करने पापों की प्रायश्चित सभी...........(१)
छोड़ता नहीं किसीको वो
है इतना कठोर निर्दयी,
बच्चा बूढ़ा कोई बच नहीं पाता
ले लेता है चपेट में सभी...................(२)
कराल की काली छाया है वो
नियति की कठोर सत्य,
बचना उससे मुश्किल है
जितने दुनियाँ में है प्राणिमात्र.......(३)
देख उसको याद आने लगी
अगली पिछली सारी बातें,
सोचने लगा सब कर्मो का फल
अब क्या होगा पछताते..............(४)
भोगने को शारीर तैयार न था
प्रदत्त उसकी वेदना,
ये तो सब करनी का फल
पड़ता एक दिन भोगना..............(५)
फिर भी दिल को मिलता सुकून
सामने देख उस विकराल काया,
क्योंकि मन जपता वो महामंत्र
छोड़ दुनियाँ की सब माया...........(६)
कभी न सोचा था उसका
जिसका हम सबके ऊपर सत्ता,
आज छोड़ सब पार्थिव चीजें
मन उससे मिलना चाहता..........(७)
यह है दुनियाँ की कठोर सत्य
इससे आज तक न कोई बचा,
जहाँ से निकले थे एक दिन
उसमें सब कुछ मिल जाता..........(८)
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