Monday 23 May 2011

है मानव!!!

जीवन के इस शतरंज में,
कभी प्यादा तो कभी बादशाह,
कभी वजीर तो कभी घोटक,
जाने कब किसे, कहाँ,कैसे मात दे..दे...
कोई नहीं जानता....|
होड़ लगी है यहाँ 
आगे बढ़ने की,
अपनी ओहदा बचाने की,
अपने को ऊँचा दिखने की...|
चाहे इसके लिए
खून क्यों न करना पड़े मानवता का,
गला क्यों न घोंटना पड़े संस्कारों का,
चाहे कुचलना पड़े पैरों तले--
मर्यादा को,
या रौंद डाले संबंधों के नाजुक बंधन को....|
यहाँ कौन पहचानता है किस को?
सत्य के तेजव्सी प्रकाश में
उल्लू भला देख सकता है?
सभी तो खाल पहने है मानव की,
पर है असल में है  भेडिये,
मनुष्यता का चूसते हैं लहू..|
स्वांग रचते हैं साधू बनने का,
पर हकीकत में है पाखंड  |
सिद्धांत है इनका--
मुह में राम बगल में छुरी  |
स्वात, बचो इन दैत्यों से
पहचानों इनको,
करो बेनकाव,
तोड़ डालो इनके पारदर्शी महल,
मिटादो निशान इनके...
कलंक भरी रक्ताक्त इतिहास की..|
मुक्त करो इन नर खादकों के पंजों से
समाज,देश तथा मानव जाती को
अपनी शुभ्र ज्योति से..|
तब जा के सुरक्षित होगा समाज,
त्रास मुक्त होंगे ये मानव,
विष रहित होगी ये हवा,
फिर उसमे साँस ले सकेंगे,
भविष्य की नवजात अंकुर(आनेवाली पीढ़ी)
प्रवाह होगा मानवता का 
अमृत निर्झर सदा के लिए...|


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