Sunday 29 May 2011

हे नवागत!!!

हे नवागत!
तुम्हारी आने की ख़ुशी में,
उत्सव मुखरित होती है ये धरा,
शंखनाद गूंजता है दिशाओं में,
नव-प्राण संचार होता है
तरु-लताओं के मुरझाये गात्र में...|
तुम्हारे मुस्कराने से
खिल उठते हैं वन-उपवन ,
चहक कर खग कम्पित करते हैं गगन,
कलकल रागिनी सुनाती है नदियाँ,
नृत्य करने लगते हैं समस्त प्राणियां ...|
तुम्हारे क्रंदन से
भूचाल आता है पृथ्वी में,
थम सा जाता है काल-चक्र की गति,
स्पंदन रुक जाता है संसार का...|
तुम्हारे निष्पाप चेहरे पर
हमने देखा है खुदा की परछाई,
तुम्हारे थिरकते क़दमों में
प्रगति लेती है अंगडाई..|
तुम में समाहित 
असीम सम्भावनाओं का भण्डार,
नव चेतना का हो तुम कर्णधार,
तुम्हारे चरणों में है न्योछावर 
जगत की समस्त धन-राशियाँ,
क्योंकि तुम हो
इस ब्रम्हांड की अमूल्य निधियां...|
 

No comments:

Post a Comment