Tuesday 24 May 2011

विवशता!!!

प्रतीक्षा,,,
किसी इपषित वस्तु का,
जिसका न मिलने पर या,
मिलने में देरी होने पर,
मन में जात होता है बैचेनी...|
इससे उत्पन्न होता है खीज,छटपटाहट ,
धीरे,धीरे मन होता है ग्रसित
मानसिक शंकाओं से,
फिर जाग्रत होता है-
बुद्धितत्व और भावतत्व  में तनातनी ...|
विवश भाव दब जाता है तर्क के चपेट में,
यहीं से सुरु होता है-मनोविकार,
मन घिर जाता है कुंठाओं से,
जो की पैदा करते हैं इर्ष्या को...|
इर्ष्या से प्रबृत्त मन,
दूसरा रूप ग्रहण करता,
और फिर भाव पैदा होता है क्रोध का...|
फिर जन्म लेता है-अहंकार,
विनाश कारी प्रकृतियो का सूत्रधर,
घटाने को तत्पर होता भयावहता....|
पर जब मिल जाता है वह,,
जिसके  लिए है ये मानसिक उथलपुथल,
बोध होता है अपनी गलती का....|
क्या यही है ?मानव की प्रकृति,
या उसकी कमजोरी की विवशता.....|

 

 

No comments:

Post a Comment