Monday 30 May 2011

परिभाषा प्यार की!!!

प्रेम,प्यार,इश्क......
इस ढाई अक्षर क्या पढ़ लिया,लिख लिया,
समझने लगे कि,इसे पहचान गया...|
क्या कभी सोचा है तुमने?
ये है क्या चीज़?
क्या है परिभाषा?
क्या है स्वरुप?
रूप,गुण इसका....|
क्या समझोगे तुम?
तुमने तो तौला है इसको
भौतिक तुला पर,
कुछ देना तो बदले में पाना,
यही है सिद्धांत तुम्हारा....|
पर भूल गए हो तुम
समर्पण इसका है नाम,
जहां सर्वस्व लुटाने में लोग समझते हैं अपनी शान....|
अपनी सत्ता भूलकर 
हो जाते हैं एकाकार 
यही है शाश्वत प्यार...
युगों से है अमर
चाँद  सूरज कि तरह
न मिटा है न मिटेगा  कभी इसकी पहचान...|

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