Monday 16 May 2011

नेता उपाख्यान!!!

एक दिन चिंताग्रस्त होके बैठे थे नरक के अधीश्वर,
नारायण नारायण जापते वहाँ प्रकट हुए नारद मुनिबर...(१)
क्या कारण है इतना चिंतामग्न हो हे! यमराज,
कृपा करके अपने चिंता का बतादो हमको राज...(२)
बोले नरक के अधिपति क्या बताऊँ हो गया हूँ परेशान,
पता नहीं अब तक क्यों नहीं आया है मरा हुआ एक जान...(३)
उस जान को गए थे लेने मर्त्य मंडल मेरे कुछ यमदूत,
पर नहीं लौट सके अब तक बताता है चित्रगुप्त...(४)
चिंता न करो बोले मुनिवर करता हूँ समाधान,
नारायण नारायण जपते मुनि शुरु किया मर्त्य अभियान...(५)
खोजते खोजते मर्त्य मंडल में नारद को मिल गया पता,
कुछ दिन पहले मरा हुआ था भारत का एक नेता...(६)
उसके बारे में खोजबीन शुरू करदिया नारद श्रीमान,
था वो बहुत भ्रष्टाचारी नेता बड़ा ही बेईमान...(७)
लालची बड़ा था घटिया थी उसकी ईमान,
लोगों का खून चूस  चूसके लिया था मासूमों का जान...(८)
पाप का गठरी भर भर के हो गया था भारी,
यमदूत क्या उठा पाएंगे उसको क्रेन(crane) भी बोलेगा सॉरी...(९)
पहुँच के पास नारद श्रीमान बोले चलो हे! नेता,
नरक में तुम्हारा स्वागत होगा मत करो तुम चिंता...(१०)
सुनकर बोले नेताजी नरक में भी क्या कर पाऊंगा नेतागिरी?
वहाँ भी क्या चला पाऊँगा अपनी पॉवर की दादागिरी?...(११)
नारद बोले चिंता न करो चलो मेरे साथ,
नरक में भी मनवा सकते हो तुम अपनी बात....(१२)
लेकर उसकी जान को नारद चल दिए नर्कपुर,
पहुँच कर नरक नेताजी का गर्व हो गया चूर...(१३)
यमराज ने दिया आदेश ले लो इस कमीने की जान,
तडपाओ इतना की इसे सत्य का हो जाए ज्ञान...(१४)
जैसी करनी वैसी भरनी जगत का है बिधान,
अब भी समय है सुधर जाओ हे! नेता सुजान...(१५)






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