माँ !तूने मुझे जनम क्यों दिया ?
अच्छा होता मुझे मार देती ,
कोख में ही तेरे |
अच्छा होता तू मुझे ,
न लाती इस दुनियाँ में ||
काश ! मैं मारी जाती कंस के हाथों,
बचपन में ही शिला पर पटक कर ||
आज , मुझे ये दिन देखना न पड़ता ,
यूँ भेडिओं के हाथों वलात्कार न होना पड़ता ,
मानव के मुखौटे पहनकर घुमने वाले ,
दरिंदों के हाथों ,
यूँ अस्मत मुझे गँवाना न पड़ता ||
घिन आती है मुझे इन चेहरों से ,
जो कहलाते हैं अपने को मानव ,
पर कदाचित पशु भी
न करते होंगे इतने घिनौने करतव ||
हे ,भगवान !
क्या सोचकर बनाया हैं इनको ,
किस मिट्टी से बनाया हैं इनको ,
जो धारण करती हैं इनको ,
अपने ही खून से बनाती है इनको ,
दुर्भाग्य से ,मिटाने पर तुले हैं उनको ||
युगों से हो रहा है अवला पर अत्याचार ,
कभी सीता के रूप में रावण का वार ,
कभी द्रौपदी के रूप में चिर हरण दुर्योधन के हाथों ,
सब सहते हुए हैं बेवस लाचार ||
पापियों के हाथों हो रहा है हररोज़ वलात्कार ,
इनसान नहीं हैं ये लोग ,
महिषासुर का हैं ये सब अवतार ||
पर मत भूलों माँ का रूप दुर्गा भी है ,
संहार करनेवाली नरमुंड पहननेवाली काली भी है ,
धारण कर पालन करने वाली माँ भी है ||
क्यों कर रहे हो उस माँ का अपमान ?
जिसने तुम जैसे पापियों को ,
गर्भ में धारण करके ,
दिया है अनमोल जीवन दान ||