Tuesday 31 May 2011

हे! ईश्वर!!!

हे ! ईश्वर!
आखिर ये चलेगा कबतक?
जिसको तुमने बनाया है
तुम्हारा ही नाम लेकर 
तुम्हारा ही करता है खून,
मचा रखा है तांडव धर्म के नाम पर,
रौंद कर पैरों तले मानव को 
कुठारघात करता है मानवता पर..|
ये सब हो क्यों रहा है?
जिसका न रूप है,न आकार है,
न इतिहास है,न शिनाख्त है,
उसको लेकर आज कुछ लोग 
शिनाख्त पैदा करते हैं,
मजहब के नाम लेकर 
मानवता का नाश करते हैं,
सामाजिकता का खून कर
नफरत का बिज बोते हैं...|
काश! ये लोग समझ पाते
ये सब क्यों ?किसलिए?किसके लिए?
अरे! ये तो सोचो
मानव न रहा तो ,
खुदा को कौन पहचानेगा?
खुदा खुद अपने पहचान को तरसेगा ,
उसकी जिंदगी न रही तो,
खुदा का वजूद ही मिट जाएगा..|
मानव को करो प्यार तो
खुश बहुत होते हैं खुदा,
दोनों का स्वरुप एक हैं
रूप भले ही हो जुदा...|


 

 

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