Saturday 28 May 2011

हे !!!कलि

देख कर दुःख होता है मुझे
खिलती हुई उस नविन कलि को,
भविष्य से अनभिज्ञ ,
कैसी मुस्कुरा रही है!!!!!!
देख कर बिषाद की रेखाएँ
खिंच जाता है मन में...|
हाय!,,इस सुकुमारी कोमल तनया,
शुभ्रांगी,चारुवसना को क्या मालुम की,
इस मलय में,
वासना की  पंख फैलाए ,
दंडायमान है मदगंध भ्रमरराजी
मुख प्रसारित किये,
चूस कर मिटाने को  अपनी महाप्यास,
जो ना कभी तृप्त हैं,ना होंगे...|
मतलब हैं इनका-
बस तन से,न की मन से...|
स्यात ,संभल जाओ प्यारी कलि,
अभी नहीं है वक़्त खिलने का,
सिकोड़ लो अपना आँचल को ओट में,
छिपालो आनन  कोमल किसलय की  घोंसले में...|

!!
 

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